Indian Family Law Change: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसे मामले में अहम फैसला सुनाया है जिसमें बेटे और बहू ने सास-ससुर को उनके ही घर से निकालने की कोशिश की थी। कोर्ट ने कहा कि यदि कोई बेटा और उसकी पत्नी माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार करते हैं तो उन्हें मकान खाली करने का आदेश दिया जा सकता है। अब बुजुर्ग माता-पिता को अपने घर से उत्पीड़न करने वाले बच्चों को बाहर निकालने का कानूनी अधिकार होगा। यह फैसला उन सैकड़ों बुजुर्गों के लिए राहतभरा है जो मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का शिकार होते हैं। सरकार ने इसके लिए “पैरेंट्स वेलफेयर एक्ट” के तहत संशोधन भी किया है जिससे कार्रवाई और भी सरल हो गई है।
सास-ससुर के लिए दो नए नियम
सरकार ने माता-पिता के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए दो नए नियम लागू किए हैं। पहला, अब माता-पिता अपनी संपत्ति से संबंधित किसी भी झगड़े में सीधे लोक अदालत में केस दर्ज कर सकते हैं। दूसरा, यदि कोई बुजुर्ग अपने घर में शांति से रहना चाहता है, तो बेटे-बहू को जबरदस्ती वहां नहीं रहने दिया जाएगा। यह दोनों नियम पूरे देश में प्रभावी किए गए हैं और राज्यों को कहा गया है कि वे अपने स्तर पर जागरूकता अभियान चलाएं। यह बदलाव पारिवारिक विवादों में तेजी से समाधान दिलाने के उद्देश्य से लाया गया है, ताकि बुजुर्गों को मानसिक और कानूनी राहत मिल सके।
घर से निकालने का अधिकार
नए नियमों के तहत यदि कोई बेटा या बहू माता-पिता को मानसिक या शारीरिक रूप से परेशान करता है, तो वे उन्हें अपने मकान से निकाल सकते हैं – भले ही वह मकान बेटे के नाम क्यों न हो। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि अगर मकान पर मालिकाना हक सास-ससुर का है, तो उन्हें सुरक्षा दी जाएगी। मकान मालिक को पुलिस या प्रशासन से सहायता लेकर अनचाहे परिजनों को हटाने का पूरा अधिकार है। कई राज्यों में इस नियम को लेकर स्पष्ट गाइडलाइन भी जारी की गई हैं, जिससे शिकायत की प्रक्रिया अब पहले से अधिक प्रभावी हो गई है।
पति-पत्नी के झगड़े का असर
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना है कि जब पति-पत्नी का झगड़ा माता-पिता के अधिकारों और मानसिक स्थिति को प्रभावित करता है, तो कानून को दखल देना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि माता-पिता की मर्जी के बिना बेटा-बहू उनके साथ नहीं रह सकते। यह प्रावधान अब भारतीय पारिवारिक कानूनों में मजबूती से शामिल हो चुका है। इससे पारिवारिक शांति बनी रह सकेगी और वृद्धजनों को अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में मानसिक शांति मिल सकेगी। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि बुजुर्गों का घर उनका अधिकार है और वह किसी के दबाव में नहीं रह सकते।
माता-पिता की संपत्ति पर अधिकार
यह भी साफ किया गया है कि यदि बेटा या बहू माता-पिता की संपत्ति पर जबरन कब्जा करना चाहते हैं तो वे अपराध के दोषी माने जाएंगे। माता-पिता को अब अपनी चल-अचल संपत्ति को लेकर अधिक अधिकार दिए गए हैं और वे इसे किसी भी व्यक्ति से वापस पाने के लिए कानूनी सहायता ले सकते हैं। इस नियम के अनुसार यदि बुजुर्ग चाहें तो अपनी वसीयत को बदल सकते हैं और अपात्र बच्चों को उससे बाहर कर सकते हैं। इसका उद्देश्य है कि माता-पिता अपनी संपत्ति के स्वामी बनकर स्वतंत्र निर्णय ले सकें।
बहू के अधिकार भी होंगे सुरक्षित
इस नए फैसले में यह भी स्पष्ट किया गया है कि बहू को उसके कानूनी अधिकारों से वंचित नहीं किया जाएगा। यदि बहू को पति द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा है या वह घरेलू हिंसा का शिकार है, तो उसे अलग घर और कानूनी संरक्षण दिया जाएगा, लेकिन वह सास-ससुर के घर में जबरदस्ती नहीं रह सकती। कोर्ट ने इस मुद्दे पर संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया है ताकि दोनों पक्षों को न्याय मिल सके। बहू के लिए वैकल्पिक आवास और महिला हेल्पलाइन की व्यवस्था भी राज्यों को निर्देशित की गई है।
बुजुर्गों के लिए हेल्पलाइन
सरकार ने इस तरह के मामलों को त्वरित हल देने के लिए एक विशेष हेल्पलाइन नंबर भी शुरू किया है। अब सीनियर सिटीजन्स 14567 पर कॉल कर सहायता मांग सकते हैं। यह हेल्पलाइन 24×7 चालू रहती है और इसमें शिकायत को संबंधित थाने, जिला समाज कल्याण अधिकारी और न्यायालय तक तुरंत पहुंचाया जाता है। इसके अलावा ‘वृद्धजन सेवा पोर्टल’ के जरिए भी शिकायत ऑनलाइन दर्ज की जा सकती है। सरकार का उद्देश्य है कि वृद्धजनों को अब न्याय के लिए सालों इंतजार न करना पड़े, बल्कि उन्हें तुरंत कार्रवाई मिले।
राज्य सरकारों को आदेश
सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार दोनों ने राज्य सरकारों को निर्देश दिए हैं कि वे बुजुर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून को लागू करें। जिलाधिकारियों को आदेश दिया गया है कि वे प्रत्येक महीने ऐसे मामलों की समीक्षा करें और समयबद्ध समाधान सुनिश्चित करें। साथ ही स्थानीय स्तर पर पुलिस और समाज कल्याण विभाग को संयुक्त रूप से इन मामलों की निगरानी करने का जिम्मा सौंपा गया है। इससे न केवल बुजुर्गों को राहत मिलेगी बल्कि परिवारों में अनुशासन और समझ भी बनी रहेगी।
अस्वीकृति
इस लेख में दी गई जानकारी विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स, कोर्ट के आदेश और सरकारी दिशानिर्देशों पर आधारित है। इसमें उल्लिखित नियम और कानून समय-समय पर बदल सकते हैं, इसलिए किसी भी निर्णय से पहले आधिकारिक स्रोत या कानूनी सलाहकार से पुष्टि अवश्य करें। यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और इसका उद्देश्य किसी को कानूनी परामर्श देना नहीं है। लेखक या प्रकाशक किसी भी प्रकार के नुकसान, गलतफहमी या विवाद के लिए उत्तरदायी नहीं होंगे। कृपया अपनी परिस्थिति के अनुसार उचित जानकारी लेकर ही कोई कदम उठाएं।